NSE vs BSE: भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों के सामने अक्सर यह सवाल आता है कि NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) और BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) में से किस एक्सचेंज में निवेश करना फायदेमंद होगा। दोनों ही एक्सचेंजों की अपनी विशेषताएँ और ताकतें हैं। इस लेख में हम दोनों स्टॉक एक्सचेंजों का तुलनात्मक विश्लेषण करेंगे और जानेंगे कि कौन सा एक्सचेंज आपको ज्यादा मुनाफा दिला सकता है।
मार्केट शेयर में NSE का दबदबा
शेयर बाजार में NSE का वर्चस्व BSE की तुलना में कहीं अधिक है।
- कैश सेगमेंट में NSE का मार्केट शेयर 94% है, जबकि BSE का मार्केट शेयर काफी कम है।
- इक्विटी फ्यूचर्स में NSE का मार्केट शेयर 99.99% है, जो इसे इस सेगमेंट में लगभग एकाधिकार स्थिति में लाता है।
- इक्विटी ऑप्शंस में भी NSE का मार्केट शेयर 87.5% है, जबकि BSE इस सेगमेंट में भी पिछड़ता नजर आता है।
- कुल मिलाकर, डेरिवेटिव ट्रेडिंग में NSE का दबदबा इतना अधिक है कि BSE इस मुकाबले में काफी पीछे है।
क्या कहती है यह बढ़त?
NSE के इतने बड़े मार्केट शेयर का मुख्य कारण है कि यह अधिक लिक्विडिटी और ट्रांजैक्शन वॉल्यूम प्रदान करता है। अधिकतर ट्रेडर्स और संस्थागत निवेशक NSE को ही प्राथमिकता देते हैं। दूसरी ओर, BSE का ट्रेडिंग वॉल्यूम अपेक्षाकृत कम है, जिससे इसमें उतार-चढ़ाव अधिक होता है।
NSE का रेवेन्यू ब्रेकडाउन
NSE का बिजनेस मॉडल मुख्य रूप से तीन सेगमेंट्स में बंटा हुआ है:
1. ट्रेडिंग सॉल्यूशंस (82%)
- NSE का सबसे बड़ा रेवेन्यू स्रोत ट्रेडिंग सॉल्यूशंस है।
- इसमें ट्रांजैक्शन चार्जेस का सबसे बड़ा योगदान है।
- खासकर इक्विटी ऑप्शंस से 78% रेवेन्यू आता है, जो NSE के लिए एकल सबसे बड़ा राजस्व स्रोत है।
- कैश मार्केट से 11% और इक्विटी इंडेक्स फ्यूचर्स से भी 11% का योगदान है।
- इसका मतलब है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग, विशेषकर इक्विटी ऑप्शंस, NSE के लिए सबसे अधिक फायदेमंद है।
2. क्लियरिंग और सेटलमेंट (11%)
- यह सेगमेंट भी NSE के राजस्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यहां से कंपनी को क्लियरिंग और सेटलमेंट फीस के रूप में अच्छी-खासी आय होती है।
3. अन्य स्रोत (7%)
- इस सेगमेंट में इन्वेस्टमेंट, इंडेक्स मैनेजमेंट, डाटा एनालिटिक्स और इन्वेस्टर एजुकेशन शामिल हैं।
- भले ही इनका योगदान कम हो, लेकिन ये NSE के व्यापक बिजनेस मॉडल को मजबूत करते हैं।
रेवेन्यू और प्रॉफिट ग्रोथ रेट का तुलनात्मक अध्ययन
रेवेन्यू ग्रोथ (CAGR)
- NSE: पिछले तीन वर्षों में 38% की कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR)
- BSE: इसी अवधि में 36% CAGR
- यह अंतर दिखाता है कि NSE का बिजनेस मॉडल थोड़ा अधिक आक्रामक और लचीला है।
प्रॉफिट ग्रोथ (CAGR)
- NSE: पिछले तीन वर्षों में प्रॉफिट की CAGR 33%
- BSE: प्रॉफिट की CAGR 36%
- प्रॉफिट ग्रोथ के मामले में BSE थोड़ी बढ़त दिखाता है, लेकिन राजस्व में यह काफी पीछे है।
वित्तीय प्रदर्शन (मार्च 2025)
- NSE का कुल राजस्व: ₹17,141करोड़
- BSE का कुल राजस्व: ₹3,212 करोड़
- NSE का शुद्ध लाभ (PAT): ₹12,188 करोड़
- BSE का शुद्ध लाभ (PAT): ₹1,322 करोड़
- इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि NSE का वित्तीय प्रदर्शन BSE से कहीं अधिक मजबूत है।
क्या कहते हैं वैल्यूएशन मेट्रिक्स?
- BSE का PE रेशियो: 68
- NSE का अनुमानित PE (अनलिस्टेड): 34
- यह तुलना दिखाती है कि NSE का वैल्यूएशन BSE की तुलना में सस्ता है।
- PE रेशियो का अर्थ है कि NSE में निवेश से अधिक मूल्य मिल सकता है, जबकि BSE की कीमत ज्यादा दिख रही है।
निवेश सलाह: NSE या BSE?
विशेषज्ञों की राय के अनुसार, NSE को ₹3,500 के स्तर पर खरीदने की सलाह दी गई थी। बोनस के बाद इसका समायोजित प्राइस ₹1650 है।
- जो निवेशक लंबे समय के लिए NSE में बने रहेंगे, उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सकता है।
- BSE के उच्च PE के कारण इसमें निवेश थोड़ा जोखिमपूर्ण माना जा सकता है।
- निवेशक सलाह:
- यदि आप लंबी अवधि के निवेशक हैं, तो NSE में निवेश करना बेहतर विकल्प हो सकता है।
- डेरिवेटिव ट्रेडिंग में NSE का दबदबा इसे मजबूत निवेश अवसर बनाता है।
निवेश करते समय सावधानी बरतें
- स्टॉक मार्केट में निवेश हमेशा जोखिम से भरा होता है।
- “इन्वेस्टमेंट इन सिक्योरिटीज मार्केट आर सब्जेक्ट टू मार्केट रिस्क” – यानी निवेश से पहले सभी दस्तावेजों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें।
- अतीत का प्रदर्शन भविष्य की गारंटी नहीं है, इसलिए सोच-समझकर निवेश करें।
निष्कर्ष
NSE की मजबूत वित्तीय स्थिति, अधिक मार्केट शेयर और बेहतर ग्रोथ रेट इसे BSE की तुलना में अधिक आकर्षक निवेश विकल्प बनाते हैं। हालांकि, BSE का प्रॉफिट ग्रोथ अच्छा है, लेकिन उसका उच्च PE रेशियो निवेशकों के लिए चिंता का कारण हो सकता है।
अगर आप बाजार में लंबे समय तक टिके रहने की योजना बना रहे हैं, तो NSE आपके पोर्टफोलियो में एक बेहतरीन जोड़ साबित हो सकता है।
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